संघर्ष से सिद्धि प्राप्त होती है ना की पैसे और दौलत से।।।।।

 Best story of Farmer Boy's.


बहोत पुरानी बात हे।


एक सुंदर सा गांव था उस गांव में वेणुभाई और सरला देवी करके पति पत्नी का  किसान परिवार रहता था।

शादी के बहोट सालो बाद उनके घर में गोद नही भर रही थी,

एक बार गांव वालो के कहने पर वेणुभाई और उनकी पत्नी एक पुराने मंदिर के पुजारी से मिले बाबा ने उन्हे धागा बांधा और प्रसाद दी और कुछ दवाइयां दी उन्होंने बाबा के कहने पर दवाइयां खाना चालू किया।


ऐसे करते समय पसार होने लगा बाद में करीब दो साल बाद उनके घर में खुशियां आई और उनकी गोद भरी दोनो बहौट खुश थे गांव में जाके मिठाई बांटी लेकिन थोड़ा सा प्रोब्लम था की उनको लड़का हुआ वो पेरो से अपाहिज था।

लेकिन फिर भी पति पत्नी खुश थे।


बेटा धीरे धीरे बड़ा होने लगा बड़ा जिद्दी और गुस्से वाला था।

वो शरीर से अपाहिज था पर दिमाग से एकदम शार्प था।

बड़ा होने पर उसका नाम ध्यानचंद रखा गया।

ध्यानचंद धीरे धीरे बड़ा होने लगा और पापा के साथ खेतो में जाने लगा मजे लेता था गाय भेसो के साथ खेतो में खूब मस्ती करता था।

उसके गांव में एक सुथार परिवार रहता था और उस सुथार का लड़का निकुल ध्यानचंद का दोस्त था।



दोनो में दोस्ती इतनी गहरी हो गई थी की वो दोनो खाना पीना ,खेलना कूदना एक दूसरे के घर सो जाते थे।


धीरे धीरे दोनो बड़े होने लगे और स्कूल जाने लगे।

बाजू की गांव की स्कूल में जया करते थे।

स्कूल जाने में बाहोट परेशानी थी क्योंकि स्कूल बाजू के गांव थी और बीच में नदी आती थी और उसे पार करने के लिए नाव में बैठके जाना पड़ता था।

और गांव वालो में उतनी ताकत नहीं थी और नही कोई सरकार से बात करके इस समस्या का हल निकालने में कोई रस नही ले रहा था।

ध्यानचंद को भी ये समस्या खराब लगती थी ।

वो इस समस्या को हल करना चाहता था ।


धीरे धीरे समय चलता गया ध्यानचंद पूरे स्कूल में अव्वल आता था।

मेट्रिक में भी वो अव्वल आया ,

 मम्मी पापा खुश थे अब समय था आगे की पढ़ाई करने का पापा के पास इतने पैसे नही थे कि वो अच्छी स्कूल में बेटे को पढ़ा सके।



फिर सरकारी स्कूल में इंटर के लिए एडमिशन करवाया।


इंटर में अच्छे नंबर आए और अब कॉलेज करने के लिए वो शहर में जाना चाहता था ये बात उसके स्कूल टीचर को पता चली उन्होंने उसे अपने खर्चे पर इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश करवाया।


अब कॉलेज में प्रोजेक्ट की बात आई तो धयनचंद के दिमाग में अपने गांव की परेशानी जो वो पार करके आया था वो याद आई।


उसने दोस्तो के साथ मिलके सोलर से चलने वाली नाव बनाई और अध्यापक लोगो को ये प्रोजेक्ट खूब पसंद आया क्युकी उस टाइम इतना टेक्नोलॉजी नही था।

फिर से पढ़ाई चालू की आगे की।

फाइनल एग्जाम के बाद नोकरी की भी ऑफर आने लगे पर धायनचंद लाइफ में कुछ अच्छा करना चाहता था।


वो शहर में एक प्रोजेक्ट बिल्डर से मिला और अपने अच्छे छेड़ आइडिया बताए।

प्रोजेक्ट बिल्डर प्रभावित हुआ और अपने साथ काम करने का मोका दिया।


इस बार धयनचंद की नसीब खुल गई थी वो मन लगाकर रात दिन मेहनत करने लगा और नए नए मशीन बनाए।

जैसे की सोलर से गांव में बिजली चालू की,

सोलर ट्रैक्टर, सोलर पंप और इसी तरह वो बहोट तरक्की करने लगा और अपने मां बाप टीचर और गांव का नाम रोशन किया ।

लास्ट में बात इतनी ही है की अगर आपकी परिष्टिति कैसी भी हो आप सच्चे मनसे मेहनत के साथ कुछ करना चाहते हो तो वो एक न एक दिन जरूर पूरा होता है।


जय हिंद






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